यदि समेटना हो तुम्हारे अस्तित्व को कल्पनाओं के साथ,
तो किससे समेटूं?
क्या दुनियावी चीज़, है उस कदर मंज़र में कि तुमसे कल्पना कर दी जाए?
क्या मैं हर एक उस प्रेमी की तरह ले आऊँ तुम्हें उस पुष्प की कल्पना में?
जो अक्सर चढ़ा दिया जाता है मंदिर और मैयत पर।
उसको टाँक दिया जाता है प्रेमिका के बालों में,
निहित ही खूबसूरती बढाने के लिए,
पर तुम पुष्प नहीं हो।
पुष्प का रहा ही नहीं कोई अस्तित्व,
रहा तो उसको धारण करने वाले का मात्र।
पुष्प सुंदर जरूर होते हैं,
पर तुम पुष्प नहीं हो।
क्या मैं कल्पना करूं तुम्हारी उस चांद के साथ,
जिसमें अपना ना नूर है ना अपना गुरूर?
बस वह ढ़लता रहता है, उगता रहता है एक स्वर में जैसे वही उसकी पूरी कायनात है।
नहीं,
तुम चांद भी नहीं हो,
स्वयं एक नूर हो, एक उजाला हो, एक रोशनी हो!
रात्रि का चरागा हो, जुगनू की बाल्टी हो।
यदि है कुछ तुम में तो वो तुम्हारा है,
तुम चांद भी नहीं हो।
क्या करुँ मैं तुम्हारी कल्पना किसी झील के साथ,
जो रहती है, ठहरती सी, एक टक सिमटी,
झेलती ना जाने नगरों के कितने पापों को,
और खामोशी से सहती हैं मंजर,
झील सुंदर होती है।
पर तुम झील नहीं हो,
तुम क्रांति हो,
आवाज हो खुद की तुम,
तुम झील भी नहीं हो।
यदि कुछ हो तो,
वो अर्जुन का बाण हो,
जिसने बाण शैया पर पड़े भीष्म कि प्यास बुझाई।
यदि कुछ हो तो,
तो एक टूटा तारा हो,
जो वक़्त बेवक़्त पूर्ण करता है सब सपने,
शायद उसको टूटने का पता है।
यदि कुछ हो तो,
तो एक काजल हो,
जो जहाँ भी हो छोड़ जाता है अपनी एक अलग सी छाप,
मानो बना ही उसके लिए हो।
सखी,
तुम एक नदी हो,
बहती नदी,
प्रेम से भरी,
लबालब,
एसी जिसमें तृप्त हो जाता सब,
पवित्र, सुंदर, खामोशी भरे शोर वाली,
जिसका छलकना मानो उजागर करता है हजारों सच्चाइयाँ।
जो सराभोर करती है दिनचर्या को,
जिसके होने के भाव से मुख पर छाती हो प्रसन्नता।
जो होती है उफान पर भी,
और सूखती भी है समय-समय,
पर चलती ही रहती है।
समुद्र से दूर हो अभी सखी,
जिस दिन मिलोगी समुद्र से तो पवित्र होगा सारा समुद्र भी।
तुम वही नदी हो जिसको बच्चे बनाते हैं छोटे होते, और उगलते है सुर्य को उसके पीछे से।
तुम कुछ कागज़ सी हो,
जिसपर जो चाहे उकेर जाए प्यार से अपने भाव।
एक सुंदर लीखावट हो,
जो हर बात में रखती है अपना महत्व।
यदि कुछ हो तो,
एक अमावस्या कि रात्रि,
जिसमें खो जाते लोग,
खुद में ही, खुद से ही।
एक चाय हो,
जो सबकी अलग,
पर सबकी खास।
तुम खास हो सखी,
बहुत खास हो,
पर तुम तुम हो,
तुम में ये ही खास है!
PHOTO COURTESY : KITABGANJ
Checkout more such content at: https://gogomagazine.in/category/magazine/writeups-volume-3/
Recent Comments