हां! मैं हूँ पत्थर! सब कहते हैं। लेकिन तुम्हें देखते ही मैं पिघल जाता हूँ! बहता सा दरिया बन जाता हूँ मैं, जो समुद्र को छोड़कर कहीं रुकना नहीं चाहता! काश तुम समुंदर होती तो तुम में मिलना मेरा नसीब होता लेकिन तुम तो ओस की बूंद हो! प्यारी सी, कोमल सी। कितने ही पत्तों की किस्मत में हो तुम बस मुझे छोड़कर! बदकिस्मती देखो, जो तुम मिलने की कोशिश भी करती हो मुझसे समुद्र में, मुझसे मेरा हक़, मेरा इश्क़ एक सीप छीन लेता है! लेकिन सही है, मैं तुम्हें दे भी क्या सकता हूँ? तुमसे तुम्हारा अस्तित्व छीन लेता मैं ! लेकिन वो सीप तुम्हें मोती बना देगा।
खैर छोड़ो! मैं बहता रहूंगा फिर भी वैसे ही, औऱ मेरा सर सर बहने का शोर दूसरों के दुखों को शांत भी करेगा! उस मोड़ से निकल जाऊंगा मैं धीरे से, जहां मुझे सुनने वाला कोई न होगा और उसी सन्नाटे में रो जाऊंगा चुपके से! मैं बस बहता चला जाऊंगा! बस बहता चला जाऊंगा।
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Photo Courtesy: https://www.instagram.com/p_paradox07/
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